मैं बचपन से ही भक्ति की राह पर था। जब मैं छोटा था, तो मां-पिता जी के साथ गांव में किसी के यहां रामायण, भागवत और सत्संग होते थे, तो मैं भी वहां जाया करता था। जब मैं 5 साल का हुआ, तो अकेले ही गांव में किसी के घर में रामायण हो रहा होता, तो वहां भी चला जाता और रामचंद्र भगवान, हनुमान जी महाराज, शिव भगवान, आदि अनेकों देवी-देवताओं की पूजा, उपासना, सेवा और भक्ति बहुत निष्ठा से करता था। धीरे-धीरे बढ़ते उम्र के साथ, गांव के सभी रामायण पार्टी के लोगों के साथ गांव में या आस-पास कहीं भी जाया करता था। इसमें सबसे बड़ा योगदान मेरी मां का था, क्योंकि कभी भी कहीं भी जाने से पहले मां से पूछना पड़ता था और मां ने कभी भी मना नहीं किया, यहां तक कि स्कूल भी छोड़ कर जाता था कभी-कभी।
जब मेरा उम्र 9 साल का हुआ, तब मैं अपने जन्मभूमि गांव पेंड्री से 3 किलोमीटर दूर सुकुलदैहान के पास टोला में श्री तुलसीकृत बाल मानस मंडली के लोगों के साथ रामायण में गया हुआ था। तभी वहां रामायण कथा में नौधा भक्ति का प्रसंग आया, जिसमें राम ने शबरी से कहा – “प्रथम भक्ति संतन कर संगा, दुसर रति मम कथा प्रसंगा।” लेकिन मुझे दूसरे पंक्ति की आवश्यकता ही नहीं पड़ी, क्योंकि पहला पंक्ति ही मेरे मस्तिष्क में ऐसा चुभ गया (बैठ गया) कि जिनको हम भगवान कहते हैं, राम कहते हैं, तीन लोक का मालिक कहते हैं, वो कह रहे थे कि मेरा पहला भक्ति है – संतों का संग करना। इसके मतलब ये सभी पूर्ण परमात्मा नहीं हैं, ये सब भगवान हैं, देवी-देवता तो हैं, लेकिन पूर्ण परमात्मा नहीं। आखिर वो पूर्ण परमात्मा कौन है, मुझे तो उसे ही प्राप्त करना है, उनकी ही भक्ति करना है। बस दिमाग में चौबीस घंटे यही चलता रहता था, और कुछ भी भाता ही नहीं था। उसी दिन से मैंने सभी देवी-देवताओं, भगवान आदि की पूजा, सेवा करना और भक्ति करना सब बंद कर दिया। बस दिमाग में एक ही बात चलती रहती थी कि आखिर वो पूर्ण परमात्मा कौन है, आखिर मुझे कब मिलेंगे, मुझे उनको पाना है, बस हमेशा यही लगा रहता था और कुछ भी भाता नहीं था।
अंततः वह परमात्मा मुझे मिल ही गया, जिनका मुझे अभिलाषा थी। जब वो महापुरुष मुझे मिले और मुझे पूरा भेद बताया कि कैसे किन-किन व किस प्रकार के भक्ति करना जिससे इस जीव का मुक्ति और कल्याण हो सके, साथ ही जीव के बारे में, जगत के बारे में, काल, भगवान, माया, देवी-देवता आदि के बारे में साथ ही वो पूर्ण परमात्मा के बारे में भी बताए। उन्होंने मुझसे कहा कि “वो में ही हूं।” तब मैं चौक गया और मैंने उनसे कहा कि “मैं कैसे मान जाऊं कि आप ही वो पूर्ण परमात्मा हैं जिनको मुझे पाना था, मुझे प्रमाण चाहिए कि आप ही पूर्ण परमात्मा हैं, तभी मैं मानूंगा वरना मैं मानने वाला नहीं हूं।” तब साहेब ने मुझसे कहा की “कोई बात नहीं बेटा, समय आयेगा तब आपको पता चल ही जाएगा।” ऐसा साहेब ने कहा और चले गए।
कुछ महीनों बाद मुझे कुछ प्रमाण मिले, तब मुझे यकीन हुआ कि वही जो मुझे मिले थे और पूरा भेद बताए वही पूर्ण परमात्मा है। ऐसा कुछ दिन बीतने के बाद, छ: माह में दस (10) साल की उम्र में दूसरी बार साहेब फिर मेले, तब साहेब ने मुझसे कहा, ‘बेटा अब तो आपको यकीन हो ही गया होगा।’ तब मेरे अंदर से उसी समय दो साखी निकली:
मेरा सिर्फ एक सद्गुरु, दूजा और न कोय। दूजा को क्या करू, जब एक ही में सब होय।
मर जाऊँ, डिगु नहीं, सद्गुरु सत्य कबीर पंथ की राह। सत्य और परोपकार के कारण, नहीं इस देह का परवाह।
तब साहेब ने मुझसे कहा था कि गृहस्थ में रह कर भक्ति कैसे की जाती है, स्वयं चल कर दूसरों को मार्गदर्शन करना और चले गए। अब तो मुझे साहेब के ऊपर पूरा भरोसा हो गया था और साहेब के मार्ग में पूर्ण समर्पित होकर साहेब की भक्ति, सेवा में लग गया। फिर छ: महीने में (साढ़े दस साल की उम्र में) पुनः पूर्ण परमात्मा तीसरी बार मिले और कहा, ‘बेटा मैंने तुम्हें जो भी ज्ञान दिया है (जो सत्य भेद बताया है) उसे तुम जन-जन तक पहुंचाना (सभी लोगों को बताना) शांत मत बैठना, मैं सदैव तुम्हारे साथ हूँ।’ यह कह कर साहेब अंतर्ध्यान हो गए।
जब मुझे यह पता चल गया है कि सद्गुरु कबीर साहेब जी ही पूर्ण परमात्मा के अवतार हैं (साहेब ही पूर्ण परमात्मा हैं), तो अब मुझे कहीं और भटकने की क्या जरूरत (क्योंकि जब पूरा को पा लिया तो अब आधे-अधूरे की क्या आवश्यकता) इसीलिए मैंने अपना तन, मन, धन, अपना शीश (पूरा जीवन) उस पूर्ण परमात्मा बंदीछोड़ सद्गुरु कबीर साहेब जी के श्री चरणों में हमेशा के लिए सौंप दिया, अब मेरा कुछ भी नहीं है, मेरे लिए अब जो कुछ भी है साहेब ही हैं। इसीलिए कहीं और भटकने की जरूरत ही नहीं पड़ती। और जब से मैं साहेब के शरण में आया हूँ, बहुत ही आनंद के साथ जीवन जी रहा हूँ। हालांकि काल निरंजन भगवान ने मुझे साहेब के मार्ग से भटकने का बहुत ही ज्यादा प्रयास किए, लेकिन मैं भी कहां भटकने वाला था (साहेब को छोड़ने वाला कहां हूँ)। हालांकि अभी मेरे जीवन में संघर्ष भी बहुत हो रहा है, आज तक अच्छा और बड़ा आश्रम नहीं है मेरे पास जिसमें मैं अच्छे से सत्संग कर अधिक से अधिक लोगों को सचेत कर सकूं उस पूर्ण परमात्मा के बारे में सच्ची भेद बता सकूं, और आज तक एक एक रुपए के लिए तरस भी जाता हूं, क्योंकि मेरे पास जितना रुपए का आय होता है उससे ज्यादा का मैं समाज सेवा का काम करने, कबीर पंथ को आगे बढ़ाने के लिए एवं मानव मात्र की भलाई, सुख, शांति, आनंद व कल्याण हेतु मुझे बड़ा से बड़ा ही कम करना है इसी प्रयास में ही लगा रहता हूँ। क्योंकि मैंने साहेब को वचन दे रखा है (उप्र साखी में वर्णन है), मेरा पूरा जीवन सत्य मतलब “पूर्ण परमात्मा बंदीछोड़ सद्गुरु कबीर साहेब जी के सत्यता को पूरे ब्रह्माण्ड (पूरी दुनिया) में स्थापित करने के लिए काम करना है और परोपकार मतलब प्राणी मात्र की भलाई, सुख, शांति, आनंद व कल्याण के लिए ही काम करना। इसी लिए आज मैं रात-दिन इतना मेहनत करने में लगा रहता हूँ। हालांकि मेरे बारे में बहुत लोग न जाने क्या-क्या कहते रहते हैं, लेकिन मुझे इससे कोई लेना-देना नहीं है, मुझे तो जो काम करना है, मैं उसी कार्य में लगा हुआ हूं, मेरा लक्ष्य क्या है मैं ही जानता हूँ। सद्गुरु कबीर पंथ के इतिहास में आज तक जो कोई भी साहेब के लिए जो काम नहीं कर पाए हैं मुझे तो वही काम करना है, यही मेरा लक्ष्य है और इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए मैं आज इतना मेहनत करने में लगा हुआ हूं और मुझे उस पूर्ण परमात्मा के ऊपर पूरा भरोसा है कि जब समय आएगा, दुनिया की कोई ताकत नहीं जो रोक सके। एक दिन ऐसा आएगा कि पूरे ब्रह्माण्ड में पूरी दुनियां लोग उस पूर्ण परमात्मा बंदीछोड़ सद्गुरु कबीर साहेब को सत्यता के साथ जानेंगे भी और पूर्ण परमात्मा के रूप में मानेंगे भी। ऐसा क्यों आज सद्गुरु कबीर साहेब जी को इस धराधाम से गए 500 साल बीत गए फिर भी दुनिया के लोग “उस पूर्ण परमात्मा बंदीछोड़ सद्गुरु कबीर साहेब” जी को वही कबीर दास, संत कबीर, एक अच्छे संत, कई लोग तो उसे हमारे आपके तरह समान मनुष्य के रूप में मानते हैं, और सबसे शर्म की बात तो यह है कितने लोग उस परमात्मा को नीचे जाती के हैं यह मान कर उस पूर्ण परमात्मा बंदीछोड़ सद्गुरु कबीर साहेब के बारे में न जाने क्या-क्या कहते हैं, लिखते हैं, बोलते हैं यहां तक दूरी बना कर रखते हैं। क्यों आज तक सद्गुरु कबीर साहेब जी के मंदिर में दुनिया वाले लोग मत्था टेकने के लिए नहीं जाते हैं, आखिर क्यों? क्या इस पर किसी ने चिंतन किया, किसी से इसके लिए काम किया आगे किए तो क्यों आज साहेब को इस धराधाम को छोड़ करके 500 साल से भी ज्यादा बीत गए आज तक उस पूर्ण परमात्मा की महिमा को जाने व उसे उस रूप में क्यों दुनिये के लोगो को नहीं बताया गया, क्यों? क्योंकि साहेब की सत्यता को समाज में सत्य ढंग से जैसे साहेब हैं वैसे भी बताया गया क्योंकि ऐसा आज तक कबीर पंथ में कोई पैदा ही नहीं हुआ। आज हजारों लोग उस पूर्ण परमात्मा के नाम की बाना पहनकर अपना पेट भरने में लगे हुए हैं, कितने लोग साहेब के नाम से बड़े-बड़े आश्रम लेकर बैठे हुए हैं, लाखों की बैंक बैलेंस ले करके उस रुपए से कोई परिवार पाल रहे हैं, कोई मौज मस्ती में उड़ा रहे हैं, कोई अपनी दुनिया में लगे हुए हैं, लेकिन उस पूर्ण परमात्मा बंदीछोड़ सद्गुरु कबीर साहेब जी के पंथ को आगे बढ़ाने वाले, उस पूर्ण परमात्मा की सच्ची लग्न से कपट रहित हो करके भक्ति करने वाले कोई-कोई एकाद ही सच्चे संत व भक्त हैं, उसी से ये परंपरा चल रहा है, बाकी अधिकांश लोग साहेब के नाम से अपनी जेब भरने व अपनी मान-बड़ाई, जेब भरने में लगे हुए हैं, और दुर्भाग्य की बात है बहुत से ऐसे पाखंडी इस पंथ में भरे पड़े हैं जो एवं उस पूर्ण परमात्मा बंदीछोड़ सद्गुरु कबीर साहेब जी को नहीं समझ पा रहे हैं नहीं जानते हैं कि साहेब कौन हैं और वो पूर्ण परमात्मा बंदीछोड़ सद्गुरु कबीर साहेब जी को ही हमारे आपने तरह सामान्य मनुष्य के रूप में खुद मान रहे हैं और दुनिया के लोगो की भी बताने में लगे हुए हैं।
सज्जनों आप सभी को बता दूं कि मेरा पूरा जीवन उस पूर्ण परमात्मा बंदीछोड़ सद्गुरु कबीर साहेब जी के श्री चरणों में समर्पित है न जीने का शौक न मारने का डर भय, में साहेब के चरणों के दास साहेब की दया से उस परम पद को प्राप्त कर चुका हूं, इस लिए मुझे कोई चिंता नहीं है, जब तक इस शरीर में श्वास रहेगा, जितना मेरे से बन सके उस पूर्ण परमात्मा बंदीछोड़ सद्गुरु कबीर साहेब की सत्य सत्ता को पूरे ब्रह्माण्ड में स्थापित कर रहूंगा कि वे पूर्ण परमात्मा बंदीछोड़ सद्गुरु कबीर साहेब कौन हैं, साहेब इस धराधाम में क्यों आए, और साहेब इस धराधाम में साहेब आ करके क्या-क्या किए, किस मुकाम की भेद बताए, किस प्रकार की भक्ति बताए, हम सभी मानव मात्र को किस प्रकार के, खान-पान, आदत-आचरण, वाणी विचार और कर्म करना चाहिए, किस प्रकार जीवन जीना चाहिए। जो भी संदेश साहेब ने हम सभी के कल्याणार्थ जो मार्ग बताए हैं उसे जब जन तक पहुंचाना। यह मेरा परम लक्ष्य है, इसे जन-जन तक पहुंचाना (पूरा करना) यही मेरा परम लक्ष्य है, और इस कार्य को मैं करके ही रहूंगा चाहे इसके लिए मुझे कितना ही मेहनत क्यों न करना पड़े। अगर इस जन्म में नहीं कर पाऊंगा तो पुनः दोबारा मानुष जन्म लेकर आ करके करना पड़ेगा तो भी करूंगा, लेकिन इस काम को करके ही रहूंगा ये मेरा प्रयास रहेगा, बाकी साहेब की जैसे दया आशीर्वाद रहेगा, जरूर व जल्दी होगा। वैसे तो मेरा असली व पहले गुरु “सद्गुरु कबीर साहेब” जी ही हैं और जगत व्यवहार के लिए दूसरा गुरु बनाया इस धरती पर “पूज्य गुरुदेव पंथ श्री हजूर अर्धनाम साहेब जी को गुरु बनाया।
सत्यनाम साहेब बंदगी
पूर्ण परमात्मा बंदीछोड़ सद्गुरु कबीर साहेब जी के चरण शिष्य
महंत चूड़ामणि
How can I help you? :)